NOT KNOWN FACTUAL STATEMENTS ABOUT संघर्ष हौसला पर शायरी

Not known Factual Statements About संघर्ष हौसला पर शायरी

Not known Factual Statements About संघर्ष हौसला पर शायरी

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ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है हमसे

हो सकते कल कर जड़ जिनसे फिर फिर आज उठा प्याला,

मंगल और अमंगल समझे मस्ती में क्या मतवाला,

हर सूरत साकी की सूरत में परिवर्तित हो जाती,

शेख, कहाँ तुलना हो सकती मस्जिद की मदिरालय से

सामाजिक प्रगति समाज ‍ ‍ ‍ में महिलाओं को मिले स्थान से मापी जा सकती है। समाज-सुधारक.......

यज्ञ अग्नि सी धधक रही है मधु की भटठी की ज्वाला,

उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ,

मिलने का आनंद न देती मिलकर click here के भी मधुशाला।।६७।

व्यर्थ बने जाते हो हिरजन, तुम तो मधुजन ही अच्छे,

इसे प्राकृतिक आपदा कहकर सब बाढ़ बाढ़ चिल्लाते हैं

लोल हिलोरें साकी बन बन माणिक मधु से भर जातीं,

हो तो लेने दो ऐ साकी दूर प्रथम संकोचों को,

कोई भी हो शेख नमाज़ी या पंडित जपता माला,

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